PM-Kisan Yojana-6000-rupye-kaise-nikale

जानिए कैसे पीएम किसान योजना से छोटे किसानों को मिलती है सालाना ₹6,000 की सीधी मदद!

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-Kisan Yojana) के तहत किसानों को सालाना ₹6,000 की आर्थिक सहायता सीधे उनके बैंक खाते में तीन किस्तों में दी जाती है। यह योजना केंद्र सरकार द्वारा छोटे और सीमांत किसानों की वित्तीय स्थिति सुधारने और कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने के उद्देश्य से 1 फरवरी 2019 को शुरू की गई थी.

पीएम-किसान योजना से किसानों को सालाना ₹6,000 की मदद कैसे मिलती है?

पात्रता: योजना का लाभ उन किसान परिवारों को मिलता है जिनके पास खेती योग्य भूमि है, और वे छोटे या सीमांत किसान हैं। योजना के तहत पति, पत्नी और नाबालिग बच्चे एक परिवार के रूप में गिने जाते हैं। किसानों को अपने नाम से कृषि योग्य भूमि का प्रमाण देना होता है।

आर्थिक सहायता: पात्र किसानों को हर साल कुल ₹6,000 की मदद मिलती है, जो तीन समान किश्तों में आती है। प्रत्येक किस्त ₹2,000 की होती है, जो लगभग हर 4 महीने पर सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में ट्रांसफर की जाती है।

भुगतान का तरीका (DBT): योजना के तहत वितरण डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से होता है, जिससे पैसे सीधे बैंक खाते में भेजे जाते हैं। यह प्रक्रिया पारदर्शिता, दक्षता और शीघ्रता सुनिश्चित करती है, तथा कहीं पर भी भ्रष्टाचार की संभावना को कम करती है।

आवेदन प्रक्रिया: किसान स्थानीय पटवारी, राजस्व अधिकारियों, कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के माध्यम से या आधिकारिक पीएम-किसान पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन में भूमि का प्रमाण, आधार कार्ड, बैंक खाता विवरण इत्यादि आवश्यक होते हैं।

  • पहली किस्त: ₹2,000 (अप्रैल–जुलाई)
  • दूसरी किस्त: ₹2,000 (अगस्त–नवंबर)
  • तीसरी किस्त: ₹2,000 (दिसंबर–मार्च)
यह पूरी प्रक्रिया DBT (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से होती है, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है और पैसा सीधे किसान के खाते में पहुँचता है।

पैसे का उपयोग: किसानों को सहायता राशि के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वे इसे बीज, खाद, कीटनाशक, खेती के अन्य जरूरी खर्च, या निजी जरूरतों के लिए उपयोग कर सकते हैं। इसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करना और उन्हें साहूकारों के जंजाल से बचाना है।

लाभार्थी पहचान और सत्यापन: राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश पात्र किसानों की पहचान करती हैं और लाभार्थियों की सूची अपडेट करती हैं। गलत डेटा पर योजना का लाभ नहीं मिलता और फर्जी लाभ प्राप्त करने पर कार्यवाही होती है।

पीएम-किसान योजना के फायदे और महत्व

  • किसानों की आय में स्थिरता लाना और आर्थिक मदद प्रदान करना।
  • कृषि से जुड़ी खर्चों में सहायता देना ताकि किसान बेहतर कृषि कर सकें।
  • साहूकारों से सस्ते ब्याज पर लोन उपलब्ध कराना।
  • पूरी देश में लगभग करोड़ों किसानों को सीधी नकदी सहायता।
 

PM-KISAN की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर:

https://pmkisan.gov.inवहाँ आधार कार्ड, जमीन के दस्तावेज़ और बैंक खाते की जानकारी देकर फॉर्म भरना होता है।

कैसे चेक करें पैसा आया या नहीं?

किसान अपने PM-KISAN खाते की स्थिति इस वेबसाइट से देख सकते हैं:https://pmkisan.gov.in/homenew.aspx 

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना एक प्रभावी वित्तीय सहायता योजना है जो भारत के छोटे और सीमांत किसानों को प्रतिवर्ष ₹6,000 की राशि सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर करती है। यह योजना किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने और कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण पहल है।

जगदीप धनखड़ ने अचानक क्यों दिया इस्तीफा? जानिए सरकारी दबाव और घटनाक्रम की पूरी कहानी

जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया? कैसे और क्यों?

1. त्यागपत्र की प्रक्रिया

21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति बंद अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला लिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को लिखित में इस्तीफा भेजा, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को मुख्य वजह बताया और डॉक्टरों की सलाह का हवाला दिया।

इसके बाद राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया और वह तत्काल प्रभाव से लागू हो गया। यह इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत होता है, जिसमें उपराष्ट्रपति अपने पद से स्वतंत्र रूप से इस्तीफा दे सकते हैं।

2. इस्तीफे के पीछे के स्वास्थ्य कारण

धनखड़ ने बताया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और चिकित्सकीय सलाह के अनुसार उन्होंने इस्तीफा दिया। मार्च और जून 2025 में उनकी सेहत खराब होने की खबरें भी आई थीं। हालांकि, स्वास्थ्य कारणों के अलावा इस निर्णय के पीछे राजनीतिक दबाव की अफवाहें भी थीं।

3. राजनीतिक दबाव और घटनाक्रम

राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार और धनखड़ के बीच मतभेद बढ़ रहे थे। विशेष रूप से, धनखड़ ने विपक्ष के एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव का जिक्र किया था, जो सरकार को नागवार गुजरा। इस असहमति के कारण कथित तौर पर उन्हें इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया।

सरकार ने उन्हें बताया कि यदि वे इस्तीफा नहीं देंगे, तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। इसके बाद धनखड़ ने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।

4. इस्तीफे का दिन, घटनाक्रम की टाइमलाइन

  • 21 जुलाई को संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन ही यह बदलाव हुआ।
  • धनखड़ ने कई बैठकें कीं लेकिन राजनीतिक स्थिति तनावपूर्ण थी।
  • शाम 7:30 बजे उन्हें बड़े मंत्री द्वारा फोन कर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया।
  • करीब 9:25 बजे उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस्तीफा सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।
  • राष्ट्रपति के समक्ष इस्तीफा जमा कराया गया और स्वीकार कर लिया गया।

5. इस्तीफे के बाद की स्थिति

धनखड़ का इस्तीफा भारत के इतिहास में उपराष्ट्रपति पद पर नियुक्ति के दौरान एक असामान्य कदम था। उपराष्ट्रपति पद वैसे भी संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण होता है और उनकी समय से पहले इस्तीफा देने से राजनीति में हलचल मची।

फिलहाल उपसभापति हरिवंश राज्यसभा के सभापति की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, और जल्द ही नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

निष्कर्ष

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारण बताकर आया, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक दबाव और केंद्र सरकार के साथ असहमति का भी बड़ा रोल था। यह इस्तीफा भारतीय राजनीति में संवैधानिक पदों के महत्व और राजनीतिक समीकरणों की जटिलता को दर्शाता है।

10 मिनट के मुकाबले में केंद्र ने जगदीप धनखड़ को भेजा इस्तीफे का ‘सेकंड-टू-फाइव’ अल्टीमेटम!

10 मिनट टू 5 पीएम: केंद्र ने कैसे पूरी की जगदीप धनखड़ की डेडलाइन?

परिचय

21 जुलाई 2025 को भारतीय राजनीति में एक बड़ा और अचानक बदलाव आया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे का समय और प्रक्रिया खासतौर पर ध्यान देने योग्य रही क्योंकि केंद्र सरकार ने शाम 5 बजे के लगभग डेडलाइन तय की थी, जिसे मिनटों के भीतर पूरा किया गया। इस लेख में हम उस रोचक टाइमलाइन, राजनीतिक दबाव, स्वास्थ्य कारण और केंद्र की रणनीति पर चर्चा करेंगे।

इस्तीफा और डेडलाइन की पृष्ठभूमि

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को अचानक, स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया। उनकी यह घोषणा संसद के मानसून सत्र के पहली दिन हुई, और उनकी पदावधि इससे पहले 2027 अगस्त तक थी। इस्तीफा देने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत हुई, जिसमें उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित इस्तीफा देते हैं और स्वीकार किए जाने पर वह तुरंत प्रभावी होता है।

केंद्र सरकार ने इस इस्तीफा तुरंत आवश्यक मान्यता दी, और माना जाता है कि शाम 5 बजे तक इस प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। यह डेडलाइन राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से तय की गई थी ताकि उपराष्ट्रपति पद की रिक्तता को शासन व्यवस्था प्रभावित न करे।

दिन भर की टाइमलाइन: 1 बजे से 5 बजे तक का मंथन

  • दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ की अध्यक्षता में राज्यसभा के व्यापार सलाहकार समिति की बैठक हुई, जिसमें सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री और सदस्य उपस्थित थे।
  • दोपहर 4:30 बजे के लिए अगली बैठक टाली गई क्योंकि सरकार का कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ था।
  • दोपहर 5 बजे से पहले कांग्रेस समेत विपक्षी नेताओं ने उपराष्ट्रपति से मुलाकातें कीं। यह माना जा रहा है कि इन वार्तालापों में भविष्य की राजनीति और इस्तीफे पर चर्चा हुई।
  • वहीं, इसी दिन विपक्ष द्वारा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसे उपराष्ट्रपति ने मंजूर किया था, जो केंद्र के राजनीतिक एजेंड़े के खिलाफ माना गया।
  • शाम लगभग 9:25 बजे, धनखड़ ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर इस्तीफे की घोषणा की, जो अब तक से लेकर शाम 5 बजे की डेडलाइन से पहले की सीधी कार्रवाई का परिणाम था।

राजनीतिक दबाव और केंद्र की रणनीति

विश्लेषकों के अनुसार, उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारण के अलावा गहरे राजनीतिक कारण भी थे। केंद्र सरकार की रणनीति को देखते हुए यह समझा गया कि विपक्ष द्वारा न्यायाधीश के खिलाफ कार्यवाही के बाद केंद्र ने उपराष्ट्रपति को लेकर अपना असंतोष जताया था। एक संभावित अविश्वास प्रस्ताव का डर भी था, जिसे टालने के लिए इस्तीफा लेना जरूरी समझा गया।

केंद्र की ओर से इस डेडलाइन पर कार्रवाई कर इस्तीफे को शीघ्र स्वीकार कर लेने का मकसद उपराष्ट्रपति पद की रिक्ति को लेकर सियासी स्थिरता बनाए रखना तथा आगामी सत्र कार्यों में व्यवधान से बचना था।

स्वास्थ्य कारणों का हवाला: क्या था सच?

धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का उल्लेख किया। हालांकि, उनकी सक्रियता और दिनभर के कार्यों को देखकर कुछ राजनीतिक जानकार इस तर्क पर संदेह भी जता रहे हैं। परंतु सीवी के अनुसार, उनका यह निर्णय अंततः राजनीतिक और व्यक्तिगत दोनों ही पहलुओं को मिलाकर लिया गया था।

निष्कर्ष: कैसे केंद्र ने डेडलाइन पर बनाया फाइनल फैसला

केंद्र सरकार ने 21 जुलाई के दिन हर स्तर पर तेज़ी से काम करते हुए उपराष्ट्रपति के इस्तीफे को अपना लिया। राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए रणनीतिक इंतजाम किए गए और डेडलाइन तक यह सुनिश्चित किया गया कि पद खाली होने के बावजूद लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित न हो।

यह घटना भारतीय लोकतंत्र में संवैधानिक पदों की अहमियत, राजनीतिक समीकरण और समय की महत्ता को दर्शाती है।

13 साल बाद निर्देशन की कुर्सी पर लौटे मानव कौल

13 साल बाद निर्देशन की कुर्सी पर लौटे मानव कौल: अपनी किताब से पर्दे पर उड़ाएंगे हिमालयी जादू!

13 साल बाद निर्देशन में मानव कौल की वापसी: यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक साहित्यिक अनुभव होगा!

भारतीय सिनेमा के सबसे संवेदनशील और बहुमुखी कलाकारों में से एक, मानव कौल, 13 साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर निर्देशन की कुर्सी पर लौट रहे हैं। लेकिन यह महज़ एक वापसी नहीं है; यह उनकी साहित्यिक आत्मा का पर्दे पर विस्तार है। अपनी प्रशंसित पुस्तक ‘साक्षात्कार’ को आधार बनाकर वह एक ऐसी फिल्म बनाने जा रहे हैं जो व्यावसायिकता की भीड़ से अलग, एक गहरा और व्यक्तिगत अनुभव देने का वादा करती है। आइए इस प्रोजेक्ट का गहन विश्लेषण करें और समझें कि यह हिंदी सिनेमा के लिए क्यों खास है। 

क्या, कौन और कब?

अभिनेता, लेखक और नाट्य निर्देशक मानव कौल ने घोषणा की है कि वह अपनी 2024 में प्रकाशित पुस्तक ‘साक्षात्कार’ पर आधारित एक फिल्म का निर्देशन करेंगे। इस फिल्म की शूटिंग नवंबर 2025 में उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल की कुछ अनछुई खूबसूरत लोकेशनों पर शुरू होगी। फिल्म में मानव कौल स्वयं मुख्य भूमिका में होंगे, और उनके साथ थिएटर और सिनेमा के दिग्गज कलाकार कुमुद मिश्रा और मानसि भवळकर भी नज़र आएंगे। 

13 साल का अंतराल: एक अभिनेता के अनुभव निर्देशक को कैसे गढ़ेंगे?

यह सवाल महत्वपूर्ण है कि इन 13 सालों में क्या बदला? इन सालों में मानव कौल ने एक अभिनेता के तौर पर खुद को तराशा है। "तुम्हारी सुलु" के संवेदनशील पति से लेकर "साइना" के सख्त कोच तक, उन्होंने किरदारों की हर परत को जिया है। यह अनुभव अमूल्य है। एक निर्देशक के लिए अपने कलाकारों की मानसिकता को समझना सबसे ज़रूरी होता है। इन 13 वर्षों के अभिनय ने उन्हें कैमरे के सामने की बारीकियों और एक अभिनेता की ज़रूरतों की गहरी समझ दी है, जो निसंदेह उनके निर्देशन को और भी ज़्यादा परिपक्व और प्रभावशाली बनाएगी। 

पन्नों से पर्दे तक: 'साक्षात्कार' की आत्मा का सिनेमाई रूपांतरण

मानव कौल का लेखन introspective (आत्मनिरीक्षण) और दार्शनिक होता है। उनकी कहानियाँ अक्सर इंसानी रिश्तों, अकेलेपन और अस्तित्व की तलाश के इर्द-गिर्द घूमती हैं। हालांकि 'साक्षात्कार' की कहानी अभी सामने नहीं आई है, लेकिन यह अनुमान लगाना सुरक्षित है कि फिल्म में हास्य और मनोरंजन के साथ-साथ एक गहरी भावनात्मक परत भी होगी। यह फिल्म महज़ एक कहानी नहीं होगी, बल्कि कौल के साहित्यिक संसार का एक दृश्य प्रतिबिंब होगी, जो उनके पाठकों और गंभीर सिनेमा के प्रेमियों, दोनों के लिए एक ट्रीट होगी। 

हिमालय ही क्यों? सिर्फ एक खूबसूरत लोकेशन से कहीं ज़्यादा

फिल्म की पृष्ठभूमि हिमालय है, और यह चुनाव महज़ संयोग नहीं है। हिंदी सिनेमा में हिमालय हमेशा से सिर्फ एक सुंदर दृश्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, शांति, और आत्म-खोज का प्रतीक रहा है। इम्तियाज अली की 'रॉकस्टार' से लेकर 'हाईवे' तक, पहाड़ों ने कहानी के चरित्रों की आंतरिक यात्रा को दर्शाया है। मानव कौल की कहानी के लिए हिमालय का परिवेश एकदम सटीक लगता है, जो फिल्म को एक शांत, ताज़ा और वास्तविक एहसास देगा। यह शहर की भागदौड़ से दूर, कहानी को अपनी गति से सांस लेने का मौका देगा। 

इस फिल्म से क्या उम्मीदें हैं?

मानव कौल की यह वापसी उस दौर में हो रही है, जब दर्शक स्टारडम से ज़्यादा अच्छी कहानी को महत्व दे रहे हैं। यह फिल्म पारंपरिक मसाला फिल्मों से अलग, कथानक-प्रधान और सांस्कृतिक रूप से मज़बूत सिनेमा की भूख को शांत कर सकती है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक कलाकार का अपनी जड़ों की ओर लौटना है, जहाँ साहित्य और सिनेमा एक दूसरे से मिलते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि एक लेखक-अभिनेता-निर्देशक की तिकड़ी पर्दे पर क्या जादू बिखेरती है।ALTT के पाठकों के लिए सवाल: क्या आपने मानव कौल की कोई किताब पढ़ी है या उनकी कोई फिल्म देखी है? इस आने वाली फिल्म से आपको क्या उम्मीदें हैं? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं!
Elli-AvrRam-ने-क्यों-कहा-अलविदा-बॉलीवुड-स्टाइल-बर्थडे-पार्टी-को

जब Elli AvrRam ने बदल दी बॉलीवुड बर्थडे पार्टी की परिभाषा.. सच जानकर रह जाएंगे हैरान!

Elli AvrRam ने क्यों कहा अलविदा बॉलीवुड-स्टाइल बर्थडे पार्टी को?

परिचय: चमक-दमक से हटकर दिल जीतने वाला फैसला

बॉलीवुड में सेलिब्रिटीज़ के जन्मदिन धूमधाम और ग्लैमर के लिए मशहूर होते हैं। पर Elli AvrRam ने इस बार कुछ अलग करने की ठानी है उन्होंने बड़े और भव्य बर्थडे समारोह को छोड़कर सादगी, अपनापन और निजी खुशियों को चुना है।

समस्या: क्या बड़ी पार्टियों में रह गया है अपनापन कम?

बड़े बॉलीवुड पार्टियों में अक्सर व्यक्तित्व और संबंधों की कमी महसूस होती है। जहां कैमरे, मीडिया, और सेलेब गेस्टलिस्ट की भरमार रहती है, वहीं असली जश्न और निजी जुड़ाव शायद खो जाता है।

Elli AvrRam का समाधान: परिवार और दोस्तों के बीच खास पल

Elli ने खुलकर बताया कि वह इस बार अपने जन्मदिन पर सिर्फ करीबी दोस्तों और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहती हैं। उनकी प्राथमिकता अब चकाचौंध नहीं, बल्कि दिल से जुड़े रिश्ते और यादगार पल हैं। Elli का मानना है कि यही असली खुशी का कारण है।

उदाहरण: बॉलीवुड में बदलता है जन्मदिन सेलिब्रेशन का ट्रेंड

सिर्फ Elli ही नहीं, पिछले कुछ समय में कई सेलेब्रिटीज़ भी भव्य पार्टियों को छोड़ निजी और मीनिंगफुल सेलिब्रेशन को तवज्जो दे रहे हैं। जो दिखाता है कि पर्सनल फुलफिलमेंट और सच्ची खुशी अब सेलिब्रिटी कल्चर का नया ट्रेंड बन रहा है।

चर्चा: बदलती सोच और सामाजिक संदेश

Elli का कदम सिर्फ उनकी व्यक्तिगत पसंद का नहीं, बल्कि बदलती सोच और सामाजिक संदेश का प्रतीक भी है। वह यह दिखाती हैं कि मुख्यधारा की भीड़ से हटकर अपनी असली खुशियों को चुनना भी सही है और शायद यही आज के युवाओं, फैंस व समाज के लिए असल प्रेरणा है।

निष्कर्ष: Elli ने दी नई परिभाषा असली जश्न की

बॉलीवुड सितारों की दुनिया में Elli AvrRam का यह निर्णय बताता है कि असली जश्न वहां है, जहां अपना और अपनों का साथ हो न कि सिर्फ दिखावे और शोर में। उनका यह बदलाव बाकी सेलिब्रिटीज़ और आम लोगों के लिए भी मिसाल है।

संदर्भ

  • हालिया मीडिया इंटरव्यू और Elli AvrRam के ऑफिशियल सोशल मीडिया पोस्ट
  • बॉलीवुड ट्रेंड्स और मीनिंगफुल सेलिब्रेशन पर रिपोर्ट्स
  • भारतीय स्टार लाइफस्टाइल के बदलते पहलू
स्मृति ईरानी ने क्यों दिया क्योंकि सास भी कभी थी सेट पर मिसकैरेज का रिपोर्ट

स्मृति ईरानी ने क्यों दिया क्योंकि सास भी कभी थी सेट पर मिसकैरेज का रिपोर्ट, जानिए पूरी सचाई

"स्मृति ईरानी को 'क्योंकि सास भी कभी थी' सेट पर साबित करना पड़ा मिसकैरेज, वजह सुनकर चौंक जाएंगे आप!"

क्योंकि सास भी कभी थी के सेट पर स्मृति ईरानी को देना पड़ा मिसकैरेज का सबूत, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

टीवी शो "क्योंकि सास भी कभी थी" के आइकॉनिक किरदार तुलसी के रूप में मशहूर स्मृति ईरानी ने हाल ही में अपने एक खास और दर्दनाक अनुभव का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि जब उनका मिसकैरेज हुआ था, उस दौरान शो के मेकर्स को उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ था। उन्हें अपनी असली स्थिति साबित करने के लिए अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट दिखानी पड़ी थी।

स्मृति ईरानी ने राज शमानी के पोडकास्ट में अपनी यह कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि इस दौरान वे शो के निर्माता दिवंगत रवि चोपड़ा और एकता कपूर के साथ काम कर रही थीं। रवि चोपड़ा ने स्मृति को केवल एक हफ्ते की छुट्टी दी, जबकि एकता कपूर लगातार रोज़ाना एपिसोड के प्रमाणीकरण में व्यस्त थीं।

पर जब प्रोडक्शन टीम को लगा कि स्मृति इस बात को झूठा साबित कर सकती हैं क्योंकि शूटिंग रोकना संभव नहीं था, तो उन्होंने स्नान के बाद हॉस्पिटल रिपोर्ट दिखाई। इस रिपोर्ट ने उनको मजबूर कर दिया कि वे अपनी बात साबित करें और मेकर्स को अपने मिसकैरेज के बारे में यकीन दिलाएं।

एक्ट्रेस ने यह भी बताया कि अपने बच्चों के जन्म के बाद भी उन्हें शूटिंग पर जल्दी लौटना पड़ता था, क्योंकि शो ऑन-एयर रहता था। इस कड़ी मेहनत और समर्पण ने ही तुलसी के किरदार को टीवी इतिहास में अमर बना दिया।

यह घटना उनके करियर के सबसे चुनौतीपूर्ण पलों में से एक थी, जो आज भी दर्शकों के लिए प्रेरणादायक है। स्मृति ईरानी की यह कहानी इस बात की गवाही है कि शूटिंग के दौरान कलाकारों की व्यक्तिगत परेशानियां भी कितनी गहरी होती हैं और उन्हें कैसे सहना पड़ता है।

वर्तमान में "क्योंकि सास भी कभी थी" का रीबूट 29 जुलाई 2025 से STAR Plus पर प्रसारित हो रहा है, जिसमें स्मृति ईरानी फिर से अपनी भूमिका में नजर आ रही हैं। इस शो की वापसी को लेकर फैंस भी काफी उत्साहित हैं।

जंक फूड एडिक्शन क्या है? कारण और समाधान पूरी जानकारी

जंक फूड की लत (Junk Food Addiction) एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो हमारे स्वास्थ्य और जीवनशैली दोनों पर भारी असर डालती है। यह तब होता है जब कोई व्यक्ति स्वादिष्ट लेकिन पोषण से कम, उच्च कैलोरी और ज्यादा चीनी, नमक व वसा वाले खाद्य पदार्थों को बार-बार खाने की लत लग जाता है। ऐसे खाद्य पदार्थों को समझना, इसका कारण, लक्षण और इससे निपटने के उपाय जानना बहुत आवश्यक है।

जंक फूड की लत क्या है?

जंक फूड की लत का अर्थ है खाने की ऐसी आदत जिसमें व्यक्ति अत्यधिक मात्रा में फास्ट फूड, पिज्जा, बर्गर, चिप्स, मिठाई, कोल्ड ड्रिंक आदि खाद्य पदार्थों की लगातार और अनियंत्रित खपत करता है। यह लत ड्रग एडिक्शन जैसी होती है, क्योंकि जंक फूड में मौजूद चीनी और वसा हमारे दिमाग के रिवार्ड सिस्टम को सक्रिय कर “खुशी और सुकून” का अनुभव कराते हैं, जिससे बार-बार खाने की इच्छा होती रहती है.

जंक फूड एडिक्शन के लक्षण

  • क्रेविंग (विशेष खाद्य पदार्थों की तीव्र चाहत): जंक फूड के लिए अचानक और बहुत अधिक लालसा होना।
  • अधिक मात्रा में खाना: तब तक खाना जब तक पेट पूरी तरह भरा ना लगे या असहज महसूस हो।
  • इच्छा के बावजूद नियंत्रण न कर पाना: जंक फूड खाने की आदत को कम करने के प्रयासों में विफल रहना।
  • खाने के बाद अपराध बोध या शर्म: खाने के बाद मन में अपराधबोध और दुःख होना।
  • गुप्त रूप से खाना: दूसरों से छुपा कर जंक फूड खाना।
  • रोकथाम के दौरान Withdrawal लक्षण: जैसे चिड़चिड़ापन, सिर दर्द, बेचैनी होना.

जंक फूड एडिक्शन के कारण

  • जैविक कारण: जंक फूड में पाए जाने वाले शुगर, नमक, वसा हमारे मस्तिष्क के रिवार्ड सिस्टम को सक्रिय करते हैं, जिससे डोपामिन हार्मोन का उत्सर्जन बढ़ता है, जो लत का कारण बनता है।
  • मनोवैज्ञानिक कारण: तनाव, चिंता, डिप्रेशन या बोरियत की स्थिति में लोग जंक फूड खाकर मानसिक आराम तलाशते हैं।
  • पर्यावरणीय कारण: जंक फूड की आसानी से उपलब्धता, विज्ञापन और सामाजिक दबाव भी इस लत को बढ़ाते हैं।
  • जेनेटिक कारण: कुछ लोगों का मस्तिष्क इन खाद्य पदार्थों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है, जिससे वे आसानी से लत का शिकार हो सकते हैं.

जंक फूड एडिक्शन के दुष्परिणाम

शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • मोटापा और अधिक वजन (Obesity)
  • टाइप 2 डायबिटीज
  • हृदय रोगों का जोखिम बढ़ना
  • डायजेस्टिव समस्या जैसे एसिडिटी, गैस और अपच
  • मेटाबोलिक सिंड्रोम और फैटी लिवर डिजीज.

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • आत्मसम्मान में कमी, शर्मिंदगी और अपराधबोध
  • डिप्रेशन और चिंता
  • मूड स्विंग्स और पैनिक अटैक
  • सामाजिक एकाकीपन, क्योंकि लोग अपनी आदतों को छुपाते हैं या सामाजिक आयोजनों से बचते हैं.

जंक फूड एडिक्शन से कैसे बचें?

  • स्वस्थ आहार अपनाएं: होममेड, पोषणयुक्त भोजन को प्राथमिकता दें और तले-भुने, मीठे, अधिक नमक वाले खाद्य पदार्थों की मात्रा कम करें।
  • जंक फूड की जगह हेल्दी स्नैक्स लें: जैसे फल, नट्स, दही आदि।
  • खाने के प्रति जागरूकता बढ़ाएं: भावनात्मक स्थिति में खाने से बचें और खाने पर पूरा ध्यान दें।
  • तनाव प्रबंधन: योग, मेडिटेशन, व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
  • जरूरत पड़े तो विशेषज्ञ की मदद लें: काउंसलिंग, थेरेपी, और सपोर्ट ग्रुप्स जंक फूड की लत से छुटकारा पाने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष: जंक फूड की लत एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जो शारीरिक तथा मानसिक दोनों रूपों में बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। इसके प्रति जागरूकता और सही जीवनशैली अपनाना जरूरी है। स्वास्थ्यवर्धक व संतुलित भोजन से अपनी और अपने परिवार की रक्षा करें।

शाहरुख या सलमान नहीं, ये एक्टर थे पहली बार 1 करोड़ फीस लेने वाले स्टार

शाहरुख या सलमान नहीं बल्कि इस एक्टर को पहली बार ऑफर हुई थी 1 करोड़ रुपये की फीस। यह स्टार कोई और नहीं बल्कि साउथ इंडियन फिल्मों के महानायक चिरंजीवी हैं।

1990 के दशक में जब बॉलीवुड के बड़े सितारे जैसे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान अपनी फीस लाखों और फिर करोड़ों में ले रहे थे, उसी दौर में चिरंजीवी ने पहली बार एक फिल्म के लिए 1 करोड़ रुपयों से भी अधिक की फीस चार्ज कर इतिहास रच दिया था।

उनकी चर्चित फिल्म “आपदबंधवुदु” के लिए उन्हें करीब 1.25 करोड़ रुपये फीस दी गई थी, जो उस वक्त के लिए बहुत बड़ी रकम थी। इस रिकॉर्ड के साथ उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में सबसे पहले इतना मोटा फीस पाने वाले अभिनेता का खिताब पाया।

उस समय बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन भी 90 लाख रुपये तक फीस लेते थे, जबकि चिरंजीवी ने इस आंकड़े को पार कर दिया था। इसके बाद कमल हासन, रजनीकांत जैसे दिग्गज सितारों ने भी अपनी फीस बढ़ाई।

चिरंजीवी ने तेलुगु सिनेमा में अपने अभिनय के दम पर अपनी एक खास जगह बनाई। न केवल साउथ, बल्कि पूरे भारत में अपने एक्शन और ड्रामा से उन्होंने लाखों दिल जीते।

यह बात इसलिए भी खास है क्योंकि आमतौर पर बॉलीवुड अभिनेताओं को भारत में सबसे महंगे माना जाता है, लेकिन चिरंजीवी ने यह साबित किया कि साउथ के स्टार्स भी बड़ी फीस लेने में पीछे नहीं हैं।

इस तरह, शाहरुख खान या सलमान खान से पहले एक करोड़ की फीस लेने वाला पहला भारतीय अभिनेता चिरंजीवी ही थे, जिन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा का नाम पूरे देश में रोशन किया।

नाग पंचमी पर तवा क्यों माना जाता है अशुभ? जानें इस अनोखी परंपरा के पीछे की मान्यताएं

नाग पंचमी का पर्व और एक अनूठी परंपरा

नाग पंचमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन त्योहार है, जिसे हर साल सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। साल 2025 में यह पर्व 4 अगस्त को मनाया गया। इस दिन नाग देवताओं की पूजा का विशेष विधान है, और उन्हें दूध अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।भारत के कई हिस्सों में इस त्योहार के साथ एक बहुत ही अनोखी और सख्ती से पालन की जाने वाली परंपरा जुड़ी है; इस दिन रसोई में लोहे के तवे का इस्तेमाल नहीं किया जाता और उस पर रोटी नहीं बनाई जाती। आखिर इस परंपरा के पीछे क्या कारण है? आइए, इस मान्यता से जुड़े पौराणिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक रहस्यों को जानते हैं। 

1. पौराणिक और लोक-मान्यता: तवा है नाग के फन का प्रतीक

इस परंपरा के पीछे सबसे प्रचलित और गहरी मान्यता इसे नाग देवता के स्वरूप से जोड़कर देखती है।
  • ऐसी लोक-मान्यता है कि लोहे का तवा, अपने आकार और स्वरूप में, नाग देवता के फैले हुए फन जैसा प्रतीत होता है।
  • जब तवे को चूल्हे की आग पर रखा जाता है, तो यह प्रतीकात्मक रूप से नाग देवता के फन को आग पर तपाने या कष्ट देने जैसा माना जाता है।
  • चूंकि नाग पंचमी नागों के सम्मान का दिन है, इसलिए इस दिन कोई भी ऐसा कार्य करने से बचा जाता है जो उन्हें किसी भी रूप में कष्ट पहुंचाए। इसी श्रद्धा भाव के कारण, नाग देवता को प्रसन्न रखने और उनके क्रोध से बचने के लिए लोग तवे का उपयोग नहीं करते।
 

2. ज्योतिषीय मान्यता: तवा और राहु ग्रह का संबंध

इस परंपरा का एक और गहरा पहलू ज्योतिष शास्त्र से जुड़ा हुआ है।
  • ज्योतिष शास्त्र की कुछ मान्यताओं के अनुसार, तवे का संबंध छाया ग्रह राहु से माना गया है। राहु को अक्सर सर्प के सिर के रूप में भी दर्शाया जाता है।
  • माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन तवे को गर्म करने और उस पर रोटी पकाने से राहु ग्रह के नकारात्मक प्रभाव सक्रिय हो सकते हैं।
  • इससे परिवार में मानसिक तनाव, कलह, और बनते हुए कार्यों में अड़चनें आने की आशंका रहती है। इसलिए, राहु के अशुभ प्रभावों को शांत रखने और नाग देवता की कृपा पाने के लिए इस दिन तवे के इस्तेमाल से परहेज किया जाता है।

इस दिन क्या बनाया जाता है? (परंपरागत भोजन)

जब तवे पर रोटी नहीं बनती, तो लोग भोजन के लिए अन्य विकल्प अपनाते हैं। इस दिन आमतौर पर ऐसा भोजन बनाया जाता है जिसे पकाने के लिए तवे की ज़रूरत न हो। लोकप्रिय विकल्पों में शामिल हैं:
  • पूरी या कचौरी: इन्हें कड़ाही में तला जाता है।
  • खीर और हलवा: ये मीठे पकवान भगोने या कड़ाही में बनते हैं।
  • उबले हुए व्यंजन: जैसे उबले चने या अन्य सब्जियां।
  • चावल और दाल: इन्हें भी बिना तवे के पकाया जा सकता है।
यह भोजन बनाकर नाग देवता को भोग लगाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

निष्कर्ष: आस्था, सम्मान और परंपरा का संगम

नाग पंचमी के दिन तवा रोटी न बनाने की परंपरा केवल एक नियम नहीं, बल्कि यह प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति सम्मान, पौराणिक कथाओं में आस्था और ज्योतिषीय मान्यताओं के पालन का एक सुंदर संगम है। यह हमें सिखाती है कि हमारे त्योहारों की छोटी-छोटी परंपराएं भी गहरे अर्थ रखती हैं, जो परिवार की सुख-शांति और कल्याण की भावना से जुड़ी होती हैं। इस दिन तवे का उपयोग टालकर, भक्तगण नाग देवता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। 

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अस्वीकरण (Disclaimer)

यह लेख प्रचलित धार्मिक मान्यताओं और लोककथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है और यह किसी भी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है।

IIT से PhD, जापान से MBA: जानें कौन हैं ULLU App के मालिक विभु अग्रवाल, जो बनाते हैं ‘बोल्ड’ फिल्में”

एक हैरान करने वाला विरोधाभास

कल्पना कीजिए एक ऐसे व्यक्ति की जिसने देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान IIT कानपुर से इंजीनियरिंग की हो, बिजनेस की दुनिया को समझने के लिए जापान से MBA किया हो, और फिर ज्ञान की अपनी खोज को पूरा करने के लिए अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से PhD की डिग्री हासिल की हो। ऐसे शानदार अकादमिक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति से आप क्या करने की उम्मीद करेंगे? शायद किसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी का CEO बनना, या कोई वैज्ञानिक अविष्कार करना।लेकिन अगर हम कहें कि यह प्रोफाइल भारत के सबसे विवादास्पद OTT प्लेटफॉर्म्स में से एक, ULLU App, के संस्थापक की है, तो शायद आप चौंक जाएंगे। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि ULLU App के संस्थापक और CEO, विभु अग्रवाल की असलियत है। उनकी अकादमिक योग्यता और उनके सबसे प्रसिद्ध बिजनेस का कंटेंट, दोनों एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत हैं। आइए जानते हैं उनकी इस दिलचस्प और विरोधाभासी कहानी को। 

उनकी शानदार अकादमिक यात्रा

विभु अग्रवाल की शैक्षिक पृष्ठभूमि किसी भी कॉर्पोरेट लीडर के लिए एक सपना हो सकती है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ से आने वाले विभु ने अपनी मेधा का लोहा मनवाते हुए IIT कानपुर जैसे संस्थान में प्रवेश लिया। इंजीनियरिंग में स्नातक होने के बाद, उन्होंने अपनी व्यावसायिक समझ को तेज करने के लिए जापान का रुख किया और वहाँ से MBA की डिग्री हासिल की। उनकी ज्ञान की भूख यहीं शांत नहीं हुई; उन्होंने रिसर्च के क्षेत्र में कदम रखा और अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से PhD की उपाधि प्राप्त की। यह प्रोफाइल उन्हें अकादमिक दुनिया के शिखर पर स्थापित करता है। 

स्टील के कारोबार से स्क्रीन के ग्लैमर तक का सफर

OTT की दुनिया में कदम रखने से पहले, विभु अग्रवाल एक सफल और पारंपरिक उद्योगपति थे। उन्होंने 1995 में JAYPEECO India Pvt Ltd नाम से एक स्टील प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की थी, जो टीएमटी बार बनाती थी। कई वर्षों तक इस व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के बाद, उन्होंने 2018 के आसपास भारत में तेजी से बदल रहे डिजिटल परिदृश्य में एक बड़ा अवसर देखा।यह वह दौर था जब Jio के आने से इंटरनेट डेटा सस्ता हो गया था और भारत का एक बड़ा वर्ग, खासकर टियर-2 और टियर-3 शहरों का, मनोरंजन के लिए मोबाइल स्क्रीन की ओर रुख कर रहा था। विभु अग्रवाल ने इसी बाजार की नब्ज को पकड़ा। उन्होंने महसूस किया कि एक बड़ा दर्शक वर्ग ऐसा है जो हिंदी भाषा में बोल्ड और वयस्क विषयों पर आधारित कंटेंट देखना चाहता है, लेकिन बड़े OTT प्लेटफॉर्म्स इस मांग को पूरा नहीं कर रहे थे। इसी अवसर को भुनाने के लिए उन्होंने 2018 में Ullu App लॉन्च किया। 

ULLU का बिजनेस मॉडल: विवाद और कमाई

Ullu का बिजनेस मॉडल बहुत स्पष्ट और आक्रामक था: कम बजट में तेजी से ऐसी वेब सीरीज का निर्माण करना जिनकी कहानी बोल्ड, इरोटिक और सनसनीखेज हो, और इसे एक किफायती सब्सक्रिप्शन मॉडल के जरिए दर्शकों तक पहुँचाना। यह रणनीति काम कर गई। ऐप तेजी से लोकप्रिय हुआ, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में।वित्तीय सफलता की बात करें तो, रिपोर्ट्स के अनुसार, 2024 में कंपनी ने ₹100 करोड़ से अधिक का राजस्व अर्जित किया, जिसमें ₹15 करोड़ से ज़्यादा का शुद्ध लाभ शामिल था।हालांकि, ULLU की यह सफलता हमेशा विवादों के साये में रही है। इसके कंटेंट पर अक्सर अश्लीलता फैलाने और महिलाओं को गलत तरीके से चित्रित करने के गंभीर आरोप लगे हैं। यह प्लेटफॉर्म लगातार सरकारी एजेंसियों, सामाजिक संगठनों और अदालतों के रडार पर रहा है। इन्हीं विवादों के कारण, इसके भविष्य पर हमेशा रेगुलेटरी कार्रवाई का खतरा बना रहता है। 

एक सिक्के के दो पहलू: 'अतरंगी' और 'हरी ओम' ऐप्स

विभु अग्रवाल की व्यावसायिक समझ केवल ULLU तक सीमित नहीं है। विवादों से होने वाले जोखिम को समझते हुए, उन्होंने अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए कुछ आश्चर्यजनक कदम उठाए हैं। उन्होंने "अतरंगी" नाम से एक जनरल एंटरटेनमेंट ऐप और टीवी चैनल लॉन्च किया, जो सामान्य पारिवारिक शो, फिल्में और धारावाहिक दिखाता है।इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि उन्होंने "हरी ओम" नामक एक भक्ति ऐप भी लॉन्च किया है, जो पूरी तरह से धार्मिक कथाओं, भजनों और आध्यात्मिक कंटेंट पर केंद्रित है। एक तरफ बोल्ड कंटेंट और दूसरी तरफ भक्ति ऐप, यह विभु अग्रवाल के जटिल व्यावसायिक व्यक्तित्व को दर्शाता है। यह उनकी छवि को संतुलित करने की कोशिश भी हो सकती है और एक सुरक्षित, विवाद-मुक्त राजस्व स्रोत बनाने की एक सोची-समझी रणनीति भी। 

निष्कर्ष: एक जटिल और सफल उद्यमी

IIT से PhD, एक सफल स्टील कारोबारी, एक विवादास्पद OTT प्लेटफॉर्म के मालिक, और एक भक्ति ऐप के निर्माता विभु अग्रवाल की पहचान कई परतों में बंटी हुई है। वह एक ऐसे उद्यमी हैं जिन्होंने अकादमिक दुनिया की ऊंचाइयों को भी छुआ है और बाजार के उस कोने से भी मुनाफा कमाया है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।उनकी कहानी भारतीय उद्यमिता का एक जटिल, विरोधाभासी और बेहद सफल अध्याय है। भविष्य में वे विवाद और व्यवसाय के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं, यह देखना भारतीय डिजिटल मीडिया जगत के लिए बहुत दिलचस्प होगा। 

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