जानिए आज के सोने के भाव: 30 जुलाई 2025 को सोना हुआ महंगा या सस्ता?

आज का सोना भाव - 30 जुलाई 2025: भारत में सोने की कीमतों की पूरी जानकारी

आज 30 जुलाई 2025 को भारत में 24 कैरेट सोने का भाव ₹98,266 प्रति 10 ग्राम है, जो पिछले दिन से ₹710 (0.72%) की बढ़ोतरी को दर्शाता है। वहीं 22 कैरेट सोने का भाव ₹90,077 प्रति 10 ग्राम रिकॉर्ड किया गया है, जो पिछले मूल्य से थोड़ा उछाल दिखा रहा है।

प्रमुख विवरण:

माप24 कैरेट (₹)22 कैरेट (₹)
1 ग्राम₹9,827₹9,008
2 ग्राम₹19,653₹18,015
5 ग्राम₹49,133₹45,039
8 ग्राम₹78,613₹72,062
10 ग्राम₹98,266₹90,077
100 ग्राम₹9,82,660₹9,00,772

आज के सोने के दाम में उतार-चढ़ाव

  • आज सोना भाव लगभग स्थिर रहा, पर 24 कैरेट सोने में मामूली बढ़ोतरी देखी गई है।
  • पिछले कुछ दिनों से सोने की कीमतों में हल्की गति अपरिहार्य रही है।
  • बाजार में सोने की मांग ऑस्ट्रलिया और चीन से अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई है।

प्रमुख शहरों में सोने की कीमतें (₹/10 ग्राम)

शहर24 कैरेट22 कैरेट
मुंबई₹94,504₹90,004
दिल्ली₹94,714₹90,204
बेंगलुरु₹94,874₹90,354
कोलकाता₹95,554₹91,004
हैदराबाद₹93,664₹89,204
पुणे₹94,504₹90,004

सोने की कीमत को प्रभावित करने वाले कारक

  • वैश्विक सोने की कीमत: अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने के भाव में उतार-चढ़ाव भारत की कीमतों पर तुरंत असर डालता है।
  • डॉलर की विनिमय दर: अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपए की मजबूती या कमजोरी सोने की कीमतों को प्रभावित करती है।
  • सरकारी कर और शुल्क: भारत में सोने पर अक्टूबर 2025 वित्त बजट के बाद कुछ राज्यों में टैक्स बदलाव की बात चल रही है, जो कीमतों का एक कारक हो सकती है।
  • मांग और आपूर्ति: त्योहारों और शादी के सीजन में मांग बढ़ने से कीमतें बढ़ सकती हैं।

पिछले 10 दिनों का सोना भाव ट्रेंड (24 कैरेट / 10 ग्राम)

तारीखकीमत (₹)
21 जुलाई 2025₹99,388
22 जुलाई 2025₹100,248
23 जुलाई 2025₹100,014
24 जुलाई 2025₹98,846
25 जुलाई 2025₹97,922
26 जुलाई 2025₹97,806
27 जुलाई 2025₹97,806
28 जुलाई 2025₹97,556
29 जुलाई 2025₹98,174
30 जुलाई 2025₹98,266

निष्कर्ष

30 जुलाई 2025 को भारत में सोने की कीमतों में हल्की तेजी देखी गई है, जो इस पीले धातु की निवेश और मांग में बरकरार रुचि को दर्शाती है। यदि आप सोना खरीदने या बेचने का विचार कर रहे हैं, तो आज के रेट आपके निर्णय के लिए मुख्य आधार हो सकते हैं। समय-समय पर वैश्विक बाजार और स्थानीय एक्साइज ड्यूटी में बदलावों पर नजर रखना फायदेमंद रहेगा।

PM-Kisan Yojana-6000-rupye-kaise-nikale

जानिए कैसे पीएम किसान योजना से छोटे किसानों को मिलती है सालाना ₹6,000 की सीधी मदद!

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-Kisan Yojana) के तहत किसानों को सालाना ₹6,000 की आर्थिक सहायता सीधे उनके बैंक खाते में तीन किस्तों में दी जाती है। यह योजना केंद्र सरकार द्वारा छोटे और सीमांत किसानों की वित्तीय स्थिति सुधारने और कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने के उद्देश्य से 1 फरवरी 2019 को शुरू की गई थी.

पीएम-किसान योजना से किसानों को सालाना ₹6,000 की मदद कैसे मिलती है?

पात्रता: योजना का लाभ उन किसान परिवारों को मिलता है जिनके पास खेती योग्य भूमि है, और वे छोटे या सीमांत किसान हैं। योजना के तहत पति, पत्नी और नाबालिग बच्चे एक परिवार के रूप में गिने जाते हैं। किसानों को अपने नाम से कृषि योग्य भूमि का प्रमाण देना होता है।

आर्थिक सहायता: पात्र किसानों को हर साल कुल ₹6,000 की मदद मिलती है, जो तीन समान किश्तों में आती है। प्रत्येक किस्त ₹2,000 की होती है, जो लगभग हर 4 महीने पर सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में ट्रांसफर की जाती है।

भुगतान का तरीका (DBT): योजना के तहत वितरण डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से होता है, जिससे पैसे सीधे बैंक खाते में भेजे जाते हैं। यह प्रक्रिया पारदर्शिता, दक्षता और शीघ्रता सुनिश्चित करती है, तथा कहीं पर भी भ्रष्टाचार की संभावना को कम करती है।

आवेदन प्रक्रिया: किसान स्थानीय पटवारी, राजस्व अधिकारियों, कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के माध्यम से या आधिकारिक पीएम-किसान पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन में भूमि का प्रमाण, आधार कार्ड, बैंक खाता विवरण इत्यादि आवश्यक होते हैं।

  • पहली किस्त: ₹2,000 (अप्रैल–जुलाई)
  • दूसरी किस्त: ₹2,000 (अगस्त–नवंबर)
  • तीसरी किस्त: ₹2,000 (दिसंबर–मार्च)
यह पूरी प्रक्रिया DBT (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से होती है, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है और पैसा सीधे किसान के खाते में पहुँचता है।

पैसे का उपयोग: किसानों को सहायता राशि के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वे इसे बीज, खाद, कीटनाशक, खेती के अन्य जरूरी खर्च, या निजी जरूरतों के लिए उपयोग कर सकते हैं। इसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करना और उन्हें साहूकारों के जंजाल से बचाना है।

लाभार्थी पहचान और सत्यापन: राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश पात्र किसानों की पहचान करती हैं और लाभार्थियों की सूची अपडेट करती हैं। गलत डेटा पर योजना का लाभ नहीं मिलता और फर्जी लाभ प्राप्त करने पर कार्यवाही होती है।

पीएम-किसान योजना के फायदे और महत्व

  • किसानों की आय में स्थिरता लाना और आर्थिक मदद प्रदान करना।
  • कृषि से जुड़ी खर्चों में सहायता देना ताकि किसान बेहतर कृषि कर सकें।
  • साहूकारों से सस्ते ब्याज पर लोन उपलब्ध कराना।
  • पूरी देश में लगभग करोड़ों किसानों को सीधी नकदी सहायता।
 

PM-KISAN की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर:

https://pmkisan.gov.inवहाँ आधार कार्ड, जमीन के दस्तावेज़ और बैंक खाते की जानकारी देकर फॉर्म भरना होता है।

कैसे चेक करें पैसा आया या नहीं?

किसान अपने PM-KISAN खाते की स्थिति इस वेबसाइट से देख सकते हैं:https://pmkisan.gov.in/homenew.aspx 

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना एक प्रभावी वित्तीय सहायता योजना है जो भारत के छोटे और सीमांत किसानों को प्रतिवर्ष ₹6,000 की राशि सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर करती है। यह योजना किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने और कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण पहल है।

10 मिनट के मुकाबले में केंद्र ने जगदीप धनखड़ को भेजा इस्तीफे का ‘सेकंड-टू-फाइव’ अल्टीमेटम!

10 मिनट टू 5 पीएम: केंद्र ने कैसे पूरी की जगदीप धनखड़ की डेडलाइन?

परिचय

21 जुलाई 2025 को भारतीय राजनीति में एक बड़ा और अचानक बदलाव आया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे का समय और प्रक्रिया खासतौर पर ध्यान देने योग्य रही क्योंकि केंद्र सरकार ने शाम 5 बजे के लगभग डेडलाइन तय की थी, जिसे मिनटों के भीतर पूरा किया गया। इस लेख में हम उस रोचक टाइमलाइन, राजनीतिक दबाव, स्वास्थ्य कारण और केंद्र की रणनीति पर चर्चा करेंगे।

इस्तीफा और डेडलाइन की पृष्ठभूमि

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को अचानक, स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया। उनकी यह घोषणा संसद के मानसून सत्र के पहली दिन हुई, और उनकी पदावधि इससे पहले 2027 अगस्त तक थी। इस्तीफा देने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत हुई, जिसमें उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित इस्तीफा देते हैं और स्वीकार किए जाने पर वह तुरंत प्रभावी होता है।

केंद्र सरकार ने इस इस्तीफा तुरंत आवश्यक मान्यता दी, और माना जाता है कि शाम 5 बजे तक इस प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। यह डेडलाइन राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से तय की गई थी ताकि उपराष्ट्रपति पद की रिक्तता को शासन व्यवस्था प्रभावित न करे।

दिन भर की टाइमलाइन: 1 बजे से 5 बजे तक का मंथन

  • दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ की अध्यक्षता में राज्यसभा के व्यापार सलाहकार समिति की बैठक हुई, जिसमें सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री और सदस्य उपस्थित थे।
  • दोपहर 4:30 बजे के लिए अगली बैठक टाली गई क्योंकि सरकार का कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ था।
  • दोपहर 5 बजे से पहले कांग्रेस समेत विपक्षी नेताओं ने उपराष्ट्रपति से मुलाकातें कीं। यह माना जा रहा है कि इन वार्तालापों में भविष्य की राजनीति और इस्तीफे पर चर्चा हुई।
  • वहीं, इसी दिन विपक्ष द्वारा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसे उपराष्ट्रपति ने मंजूर किया था, जो केंद्र के राजनीतिक एजेंड़े के खिलाफ माना गया।
  • शाम लगभग 9:25 बजे, धनखड़ ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर इस्तीफे की घोषणा की, जो अब तक से लेकर शाम 5 बजे की डेडलाइन से पहले की सीधी कार्रवाई का परिणाम था।

राजनीतिक दबाव और केंद्र की रणनीति

विश्लेषकों के अनुसार, उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारण के अलावा गहरे राजनीतिक कारण भी थे। केंद्र सरकार की रणनीति को देखते हुए यह समझा गया कि विपक्ष द्वारा न्यायाधीश के खिलाफ कार्यवाही के बाद केंद्र ने उपराष्ट्रपति को लेकर अपना असंतोष जताया था। एक संभावित अविश्वास प्रस्ताव का डर भी था, जिसे टालने के लिए इस्तीफा लेना जरूरी समझा गया।

केंद्र की ओर से इस डेडलाइन पर कार्रवाई कर इस्तीफे को शीघ्र स्वीकार कर लेने का मकसद उपराष्ट्रपति पद की रिक्ति को लेकर सियासी स्थिरता बनाए रखना तथा आगामी सत्र कार्यों में व्यवधान से बचना था।

स्वास्थ्य कारणों का हवाला: क्या था सच?

धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का उल्लेख किया। हालांकि, उनकी सक्रियता और दिनभर के कार्यों को देखकर कुछ राजनीतिक जानकार इस तर्क पर संदेह भी जता रहे हैं। परंतु सीवी के अनुसार, उनका यह निर्णय अंततः राजनीतिक और व्यक्तिगत दोनों ही पहलुओं को मिलाकर लिया गया था।

निष्कर्ष: कैसे केंद्र ने डेडलाइन पर बनाया फाइनल फैसला

केंद्र सरकार ने 21 जुलाई के दिन हर स्तर पर तेज़ी से काम करते हुए उपराष्ट्रपति के इस्तीफे को अपना लिया। राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए रणनीतिक इंतजाम किए गए और डेडलाइन तक यह सुनिश्चित किया गया कि पद खाली होने के बावजूद लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित न हो।

यह घटना भारतीय लोकतंत्र में संवैधानिक पदों की अहमियत, राजनीतिक समीकरण और समय की महत्ता को दर्शाती है।

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